Hello Students, आज मै आपको बिहार विद्यालय परीक्षा समिति पटना पर आधारित कक्षा दसवीं के इतिहास व्यापार और भूमंडलीकरण का सब्जेक्टिव क्वेश्चन आंसर कराऊंगा अगर आप भी मैट्रिक की परीक्षा 2025 में देने वाले हैं, तो आज के इस पोस्ट में आपको Bihar Board Class 10th History Subjective Question Chapter - 7 (व्यापार और भूमंडलीकरण : Short Question) का विस्तार से विवरण दिया गया है। यहां पर Study Books Classes से जुड़कर Website और YouTube Channel पर तैयारी कराए गए बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर दिए गए हैं जो आपकी परीक्षा की तैयारी के लिए अत्यंत सहायक होंगे। ये History (इतिहास) Subjective Question PDF में डाउनलोड करने के लिए भी उपलब्ध हैं।
व्यापार और भूमंडलीकरण class 10th history Subjectiv question answer बिल्कुल आसान शब्दो में Board Exam 2025 के लिए
Bihar Board Class 10 का सामाजिक विज्ञान (Social Science) एक महत्वपूर्ण विषय है जो इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र और अर्थशास्त्र के विभिन्न पहलुओं को कवर करता है। इस विषय को समझना छात्रों के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि यह न केवल उन्हें परीक्षा में अच्छे अंक दिला सकता है, बल्कि समाज की बेहतर समझ भी प्रदान करता है।
बिहार बोर्ड Class 10 इतिहास subjective questions -2025
इतिहास का अध्ययन छात्रों को हमारे अतीत को समझने और उससे सीखने में मदद करता है। Class 10th के इतिहास के Subjective Question छात्रों के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे इतिहास की प्रमुख घटनाओं, तिथियों और व्यक्तियों के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। छात्रों को Study Books Classes के मार्गदर्शन में यह प्रश्नपत्र तैयारी करने से अच्छे अंक प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
व्यापार और भूमंडलीकरण
class 10th history Subjectiv question answer
1. 1929 के आर्थिक संकट के कारण एवं परिणामों को स्पष्ट करें।
उत्तर ⇒ 1929 के आर्थिक संकट के कारण-1929 के आर्थिक संकट के महत्त्वपूर्ण कारण निम्नलिखित हैं-
(i) कृषि के क्षेत्र में अति उत्पादन के कारण विश्व बाजारों में खाद्यान्नों की आपूर्ति आवश्यकता से अधिक हो गई। इससे अनाज के मूल्य में कमी आई तथा उनका खरीददार नहीं रहा।
(ii) गरीबी और बेरोजगारी से उपभोक्ताओं की क्रय-क्षमता घट गई थी, अतः विश्व बाजार पर आधारित व्यवस्था लड़खड़ा गई।
(ii) अमेरिकी पैंजी के प्रवाह में कमी आर्थिक संकट का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण था। अमेरिकी अर्थव्यवस्था का संकटग्रस्त हो जाना विश्व में महामंदी की स्थिति ला दी।
1929 के आर्थिक संकट के परिणाम आर्थिक महामंदी का विश्वव्यापी प्रभाव पड़ा। यूरोपीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई। यूरोप के अनेक बैंक रातोंरात बंद हो गए। अनेक देशों की मुद्रा का अवमूल्यन हो गया। अनाज और कच्चे माल की कीमतें घटने लगी। व्यापक विश्व बाजार का स्थान संकुचित आर्थिक राष्ट्रवाद ने ले लिया।
2. आर्थिक मंदी का अमेरिका, यूरोप तथा भारत पर हुए प्रभावों को इंगित करें।
उत्तर ⇒ 1929 ई० की आर्थिक संकट मंदी का प्रभाव अमेरिका, युरोप सहित भारत पर भी पडा जो निम्नलिखित हैं
(i) अमेरिका पर प्रभाव आर्थिक मंदी का सबसे बुरा परिणाम अमेरिका को झेलना पड़ा। मंदी के कारण बैंकों ने लोगों को कर्ज देना बंद कर दिया और दिए हुए कर्ज की वसूली तेज कर दी। कर्ज वापस नहीं हो पाने से बैंकों ने लोगों के सामानों को कुर्क कर लिया। कारोबार के ठप पड़ जाने से बेरोजगारी बढ़ी तथा कर्ज की वसूली नहीं होने पर बैंक बर्बाद हो गए।
(ii) यूरोप पर प्रभाव-इस आर्थिक मंदी से सबसे प्रभावित देश जर्मनी और ब्रिटेन था। फ्रांस इस मंदी से इसलिए बच गया क्योंकि उसे जर्मनी से काफी मात्रा में युद्ध हर्जाना की राशि प्राप्त हुई थी। जर्मनी में अराजकता फैल गयी जिसका लाभ
उठाकर हिटलर ने अपने आपको सत्तासीन किया। 1929 के बाद ब्रिटेन के उत्पादन, निर्यात, रोजगार, आयात तथा जीवन निर्वाह स्तर पर सबमें तेजी से गिरावट आई।
(iii) भारत पर प्रभाव- इस आर्थिक महामंदी ने भारतीय व्यापार को काफी प्रभावित किया। 1928 से 1934 के बीच देश का आयात-निर्यात घटकर आधा हो गया। गेहूँ की कीमत में 50 प्रतिशत की गिरावट आई। कृषि मूल्य में कमी के बावजद अंग्रेजी सरकार लगान की दरें कम करने को तैयार नहीं थी जिससे किसानों में असंतोष की भावना बढ़ी। आर्थिक मंदी भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन को जन्म दिया।
3. 1919 से 1945 के बीच विकसित होनेवाले राजनैतिक और आर्थिक संबंधों पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर ⇒ युद्धोत्तर आर्थिक व्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को दो चरणों में बाँटकर देखा जा सकता है
(1) 1920 से 1929 तक का काल तथा (ii) 1929 से द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति अथवा 1945 तक का काल। इस समय के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को विकसित करने में आर्थिक कारणों का महत्त्वपूर्ण योगदान था।
(i) 1920 से 1929 तक का काल सामान्यतः आर्थिक समुत्थान एवं विकास का काल था। प्रथम महायुद्ध के बाद विश्व पर से यूरोप का प्रभाव क्षीण हो गया। हालाँकि एशियाई-अफ्रीकी उपनिवेशों पर उसकी पकड़ यथास्थिति बनी रही। युद्ध की समाप्ति के तत्काल बाद का दो वर्ष आर्थिक संकट का काल था। इस समय उत्पादन और माँग में कमी आई, बेरोजगारी बढ़ी जिससे औद्योगिक इकाइयों में श्रमिकों के हड़ताल होने लगे। 1922 के बाद के वर्षों में स्थिति में बदलाव आने लगा। नये तकनीक की सहायता से औद्योगिक विकास ने गति पकडी जिससे उत्पादन बढ़ा तथा उपभोक्ता वर्ग का भी विकास हुआ।
(ii) 1929-1945 इस चरण में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों का विकास विश्वव्यापी आर्थिक महामंदी के प्रभावों को समाप्त करने अथवा उन्हें नियंत्रित करने के उद्देश्य से हुआ। आर्थिक महामंदी का आरंभ अमेरिका से हुआ था। अतः मंदी के प्रभाव को नियंत्रित करने का प्रयास वहीं से आरंभ हुआ। 1932 में फ्रेंकलीन डी० रूजवेल्ट अमेरिका के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। मंदी से निबटने के लिए रूजवेल्ट ने नई आर्थिक नीति अपनाई जिसे न्यू डील का नाम दिया गया। अमेरिका के समान यूरोपीय राष्ट्रों ने भी महामंदी के प्रभाव से बाहर निकलने एवं अर्थव्यवस्था को विकसित करने का प्रयास किया। इसके लिए यूरोपीय राष्ट्रों की सरकारों ने कड़ा मुद्रा नियंत्रण स्थापित किया। पूर्वी यूरोपीय राष्ट्रों ने 1932 में ओटावा सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें आयात-निर्यात को संतुलित करने का प्रयास किया गया।
4. दो महायुद्धों के बीच और 1945 के बाद औपनिवेशिक देशों में होनेवाले राष्ट्रीय आन्दोलनों पर एक निबंध लिखें।
उत्तर ⇒ प्रथम विश्वयुद्ध के समाप्त होते ही मित्र राष्ट्रों ने दुनिया के सभी राष्ट्रों के लिए जनतंत्र तथा राष्ट्रीय आत्मनिर्णय का एक नया यग आरम्भ करने का वचन दिया था। ब्रिटिश सरकार ने तो यह घोषणा कर दी थी कि स्वराज्य स्थापना के जिस सिद्धांतों के लिए हम लड़ रहे हैं उसे भारत सहित सभी उपनिवेशों में लागू कर क्रमशः एक जिम्मेवार सरकार की स्थापना की जायेगी। युद्ध प्रारंभ होने के समय निलक तथा गाँधी जैसे नेताओं ने ब्रिटिश सरकार को युद्ध में हर संभव सहायता न की। परन्तु युद्ध के बाद मित्र राष्ट्रों ने उपनिवेशों में जनतंत्र लागू करने के बजाए इस पर और कठोर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया। रॉलेट एक्ट (1919) पारित होना तथा जालियांवाला बाग हत्याकाण्ड भारत में इसका उदाहरण है। 1029 की आर्थिक संकट के कारण उपनिवेशों का निर्यात घट गया। कषि सीटों के दाम घट गए फिर भी सरकार लगान की दर में कमी हेत तैयार नहीं भी दन सबसे उपनिवेशों में सरकार के प्रति घोर असंतोष राष्ट्रीय आंदोलन हेत जनता को प्रेरित कर रहा था। इसी वातावरण में 1930 ई० में भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय ब्रिटेन ने पुनः भारतीयों से युद्ध में सहयोग की अपेक्षा रखते हुए क्रमशः अगस्त प्रस्ताव तथा क्रिप्स मिशन भेजा। इन दोनों प्रस्ताव से बात नहीं बनी और 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी।
5. 1945 से 1960 के बीच विश्व स्तर पर विकसित होने वाले आर्थिक संबंधों पर प्रकाश डालें।
उत्तर ⇒ 1945 से 1960 के बीच विश्व स्तर पर विकसित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों को तीन क्षेत्रों में विभाजित करके देखने का प्रयास किया जा सकता है। प्रथम, 1945 के बाद विश्व में दो भिन्न अर्थव्यवस्था का प्रभाव बढ़ा और दोनों ने विश्वस्तर पर अपने प्रभावों तथा नीतियों को बढ़ाने का प्रयास किया। संपूर्ण विश्व मुख्यतः दो गुटों में विभाजित हो गया। एक साम्यवादी अर्थतंत्र वाले देशों का गुट जिसका नेतृत्व सोवियत रूस कर रहा था, जिसकी विशेषता थी राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था और दूसरा, पूँजीवादी अर्थतंत्र वाले देशों का गुट जिसकी विशेषता थी बाजार और मुनाफा आधारित आर्थिक व्यवस्था जिसका नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका कर रहा था। दूसरा क्षेत्र, पूँजीवादी अर्थतंत्र वाले देशों के बीच बनने वाले अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों के विकास के अंतर्गत आता है। यह क्षेत्र पूर्णतः संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा संचालित हो रहा था। इसका प्रमुख उद्देश्य साम्यवादी अर्थतंत्र के विचार के बढ़ते प्रभाव को रोकना था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने विश्व के दो क्षेत्रों दक्षिण अमेरिकी और मध्य तथा पश्चिम एशिया के तेल संपदा संपन्न देशों (इराक, इरान, सऊदी अरब, जार्डन, यमन, सीरिया, लेबनान) में जबरन अपनी नीतियों को थोपने का काम किया। वस्तुतः अमेरिका यह जानता था कि बाजार आधारित व्यवस्था के आधुनिक रूप की रीढ़ तेल और गैस नामक ऊर्जा स्रोत है, जिसकी कमी उसके सहयोगी अधिकांश पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वाले देशों में थी। एक तीसरा क्षेत्र भी था जहाँ नवीन आर्थिक संबंध विकसित हुआ था, वह क्षेत्र था एशिया और अफ्रीका के नवस्वतंत्र देशों का। इन देशों पर तत्कालीन विश्व के दोनों महत्त्वपूर्ण आर्थिक शक्ति अमेरिका और सोवियत रूस अपना प्रभाव स्थापित करना चाहते थे। चूँकि ये सभी नवस्वतंत्र देश लंबे औपनिवेशिक शासन के दौरान आर्थिक रूप से बिलकुल विपन्न हो गए थे और अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए उन्हें इन दोनों देशों से आर्थिक और राजनीतिक दोनों प्रकार के सहयोग चाहिए था।
6. 1950 के दशक के बाद अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों की विवेचना. करें।
उत्तर ⇒ 1950 के दशक के बाद अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों की व्याख्या विभिन्न दृष्टिकोण के आधार पर की जा सकती है
(i) साम्यवादी विकास- 1945 के बाद के विश्व अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय सबंधों का क्रमशः साम्यवादी राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था और बाजार तथा मुनाफा आधारित पूँजीवादी अर्थव्यवस्था ने नियंत्रित किया। दोनों एक-दूसरे के विरोधी और प्रातस्पर्धी थे। साम्यवादी सोवियत रूस ने अपना प्रभाव पूर्वी यूरोपीय राष्ट्रा जस हगरी, रोमानिया, बुल्गारिया, पोलैंड, पूर्वी जर्मनी एवं भारत सहित नवस्वतंत्र एशियाई देशों को भी अपने प्रभाव में लेने का प्रयास किया।
(ii) पूँजीवादी विकास- जिस प्रकार साम्यवादी गुट का नेतृत्व सोवियत संघ ने किया उसी प्रकार पूँजीवादी गुट की अगुआई अमेरिका ने की। अमेरिका साम्यवादी विचारधारा और अर्थतंत्र के प्रसार को रोकने का प्रयास किया। उसन दक्षिण अफ्रीका तथा मध्य एवं पश्चिम एशिया के तेल संपन्न राष्ट्रों में जबरदस्ती अपनी आर्थिक नीतियों को कार्यान्वित किया।
(III) पश्चिमी यरोप में आर्थिक विकास एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध 1947 60 के मध्य पश्चिमी यूरोपीय देशों ब्रिटेन, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, स्पेन इत्यादि में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों का विकास हआ। तथापि विश्व राजनीति और आथिक क्षेत्र में इन देशों का महत्त्व कमजोर पर्ट गया। इसका प्रमुख कारण था। अवधि में इनके उपनिवेश स्वतंत्र होते चले गए। इससे इन देशों की आर्थिक विपन्नता बढ़ गई। इस संकट से उबरने एवं साम्यवाद के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए इन राष्ट्रों ने समन्वय और
सहयोग के एक नवीन युग की शुरुआत की। (iv) एशिया और अफ्रीका के नवस्वतंत्र राष्ट- 1947 में भारत अग्रजी औपनिवेशिक शासन से स्वतंत्र हुआ। इसका अनुकरण करते हए अन्य देशों में भी स्वतंत्रता संघर्ष हुए, जिसके परिणामस्वरूप अगले दशक में लगभग सभी एशियाई और अफ्रीकी राष्ट्र साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के चंगुल से मुक्त हो गए। इन राष्ट्रों पर सोवियत रूस और अमेरिका अपना प्रभाव स्थापित करने में प्रयासशील हो गए।
7. विश्व बाजार की क्या उपयोगिता है? इससे क्या हानियाँ हुई है?
उत्तर ⇒ आर्थिक गतिविधियों के कार्यान्वयन में विश्व बाजार की महत्त्वपूर्ण उपयोगिता है। विश्व बाजार व्यापारियों, पूँजीपतियों, किसानों, श्रमिकों, मध्यम वर्ग तथा सामान्य उपभोक्ता वर्ग के हितों की सरक्षा करता है। विश्व बाजार का विकास होने से किसान अपने उत्पाद दूर-दूर के स्थानों और देशों में व्यापारियों के माध्यम से बेचकर अधिक धन प्राप्त करते हैं। कुशल श्रमिकों को विश्वस्तर पर पहचान और आर्थिक लाभ इसी बाजार से मिलता है। वैश्विक बाजार में नए रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं।
विश्व बाजार से हानियाँ - विश्व बाजार से जहाँ अनेक लाभ हुए, वहीं इससे अनेक नुकसानदेह परिणाम भी हुए। विश्व बाजार ने यूरोप में संपन्नता ला दी, लेकिन इसके साथ-साथ एशिया और अफ्रीका में साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का नया युग आरंभ हुआ। औपनिवेशिक शक्तियों ने उपनिवेशों का आर्थिक शोषण बढ़ा दिया। भारत भी उपनिवेशवाद एवं साम्राज्यवाद का शिकार बना। सरकार ने ऐसी नीति बनायी जिससे यहाँ के कुटीर उद्योग नष्ट हो गए। वैश्विक बाजार का एक दुष्परिणाम यह हुआ कि औपनिवेशिक देशों में रोजगार छिनने और खाद्यान्न के उत्पादन में कमी आने से गरीबी, अकाल और भूखमरी बढ़ गयी। विश्व बाजार के विकास से यूरोपीय राष्ट्रों में साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी। इससे
उग्र राष्ट्रवादी भावना का विकास हुआ।
8. आधुनिक ग में विश्व अर्थव्यवस्था तथा विश्व बाजार के प्रभावों को स्पष्ट करें।
उत्तर ⇒ आधुनिक युग में अर्थव्यवस्था के अंतर्गत विश्व अर्थतंत्र और विश्व बाजार ने आर्थिक के साथ-साथ राजनैतिक जीवन को भी गहराई से प्रभावित किया है। 1919 के बाद विश्वव्यापी अर्थतंत्र में यूरोप के स्थान पर संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत रूस का प्रभाव बढ़ा जो द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व व्यापार और राजनैतिक व्यवस्था में निर्णायक हो गया। 1991 के बाद विश्व बाजार के अंतर्गत एक नवीन आर्थिक प्रवृत्ति भूमंडलीकरण का उत्कर्ष हुआ जो निजीकरण और आर्थिक उदारीकरण से प्रत्यक्षतः जुड़ा था। भूमंडलीकरण ने संपूर्ण विश्व के अर्धतंत्र का केंद्र बिंदु संयुक्त राज्य अमेरिका को बना दिया। उसकी मुद्रा डॉलर पूरे विश्व की मानक मुद्रा बन गई। उसकी कंपनियों को पूरी दुनिया में कार्य करने की अनमति मिल गई अर्थात् भूमंडलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण ने अमेरिका केंद्रित अर्थव्यवस्था को जन्म दिया। आज विश्व एकध्रुवीय स्वरूप में बदलकर प्रभावशाली देश संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्थिक नीतियों के हिसाब से चल रहा है। आर्थिक क्षेत्र में भूमंडलीकरण ने अमेरिका के नवीन आर्थिक साम्राज्यवाद को जन्म दिया। इसका असर आज संपूर्ण विश्व में महसूस किया जा रहा है।
9. ब्रेटन वुड्स समझौता की व्याख्या करें।
उत्तर ⇒ इस प्रकार आर्थिक स्थिरता और पूर्ण रोजगार की गारंटी के लिए सरकारी हस्तक्षेप को कार्यान्वित करने की प्रक्रिया पर विचार विमर्श करने के लिए जुलाई, 1944 में अमेरिका के न्यू हैम्पशायर में ब्रेटन वुड्स नामक स्थान पर एक सम्मेलन आयोजित किया गया। विचार-विमर्श करने के बाद दो संस्थानों का गठन किया गया। इनमें पहला अंतर्राष्ट्रीय मद्रा कोष (IMF) था और दूसरा अतराष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक अथवा विश्व बैंक (World Bank)। इन दोनों संस्थानों को ब्रेटन वडस टिवन या ब्रेटन वडस की जुड़वाँ संतान कहा गया। आई० एम० एफ० ने अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था और राष्ट्रीय मुद्राओं तथा मौद्रिक व्यवस्थाओं को जोड़ने की व्यवस्था की। इसमें राष्ट्रीय मुद्राओं के विनिमय की दर अमेरिकी मुद्रा डॉलर के मूल्य पर निर्धारित की गई। विश्व बैंक ने विकसित देशों को पुनर्निर्माण के लिए कर्ज के रूप में पूँजी उपलब्ध कराने की व्यवस्था की। इसी आधार पर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को नियमित करने का प्रयास किया गया। संयुक्त राष्ट्र की सहयोगी संस्थाओं ने पुनर्निर्माण का दायित्व संभाला।
10. कैरीबियाई क्षेत्र में काम करनेवाले गिरमिटिया मजदूरों की जिंदगी पर प्रकाश डालें। अपनी पहचान बनाए ररने के लिए उन लोगों ने क्या किया ?
उत्तर ⇒ भारत से अधिकतर गिरमिटिया मजदूरों को कैरीबियाई द्वीप समूह में स्थित त्रिनिदाद, गुयाना और सूरीनाम ले जाया गया। बहुतेरे जमैका, मॉरीशस एवं फिजी भी ले जाए गए। गिरमिटिया मजदूर सुखी-संपन्न जीवन की उम्मीद में अपना घर द्वार छोड़कर काम करने जाते थे। कार्यस्थल पर पहुँचकर उनका स्वप्न भंग हो जाता था। बागानों अथवा अन्य कार्यस्थलों का जीवन कष्टदायक था। उनके रहने खाने का समुचित प्रबंध नहीं था। उन पर विभिन्न प्रकार की बंदिशें लगाई गई थी। अनुबंध के द्वारा उन्हें एक प्रकार से दासता की जंजीरों में जकड़ दिया गया था। उन्हें न तो किसी प्रकार की स्वतंत्रता थी और न ही कोई कानूनी अधिकार। इस स्थिति में रहते-रहते अप्रवासी भारतीय श्रमिकों ने जीवन की राह ढूँढी जिससे वे सहजता से नए परिवेश में खप सकें। इसके लिए उन लोगों ने अपनी मूल संस्कृति के तत्त्वों तथा नए स्थान के सांस्कृतिक तत्त्वों का सम्मिश्रण कर एक नई संस्कृति का विकास कर लिया। इसके द्वारा उन लोगों ने अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक पहचान बनाए रखने का प्रयास किया।
11. अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय के तीन प्रवाहों का उल्लेख करें। भारत से संबद्ध तीनों प्रवाहों का उदाहरण दें।
उत्तर ⇒ 19वीं शताब्दी से नई विश्व अर्थव्यवस्था का विकास हुआ। इसमें आर्थिक विनिमयों की प्रमुख भूमिका थी। अर्थशास्त्रियों के अनुसार आर्थिक विनिमय तीन प्रकार के प्रवाहों पर आधारित है। ये हैं (i) व्यापार, (ii) श्रम तथा (ii) पूँजी। 19वीं सदी से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का तेजी से विकास हुआ। परंतु यह व्यापार मुख्यतः कपड़ा और गेहूँ जैसे खाद्यान्नों तक ही सीमित थे। दूसरा प्रवाह श्रम का भार इसके अंतर्गत रोजगार की तलाश में बड़ी संख्या में लोग एक स्थान या देश से दूसरे स्थान और देश को जाने लगे। इसी प्रकार कम अथवा अधिक अवधि के लिए दूर-दूर के क्षेत्रों में पूँजी निवेश किया गया। विनिमय के ये तीनों प्रवाह के एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, यद्यपि कभी-कभी ये संबंध टूटते भी थे। इसके बावजूद अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमय में इन तीनों प्रवाहों की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। भारत से संबंधित तीनों प्रवाह का उदाहरण इस प्रकार हैं-
(i) भारत से श्रम का प्रवाह अंतर्राष्ट्रीय बाजार की माँग के अनुरूप उत्पादन बढ़ाने के लिए 19 वीं शताब्दी से श्रम का प्रवाह भारत से दूसरे देशों की ओर हुआ।
(ii) वैश्विक बाजार में भारतीय पूँजीपति- विश्व बाजार के लिए बड़े स्तर पर कृषि उत्पादों के लिए पूँजी की आवश्यकता थी। इससे महाजनी और साहूकारी का व्यवसाय चल निकला।
(ii) भारतीय व्यापार- कृषि के विकास होने से ब्रिटेन में कपास का उत्पादन बढ़ गया। साथ ही सरकार ने भारतीय सूती वस्त्र पर इंगलैंड में भारी आयात शुल्क लगा दिया। इसका असर भारतीय निर्यात पर पड़ा। सूती वस्त्र एवं कपास का निर्यात घट गया दूसरी ओर मैनचेस्टर में बने वस्त्र का आयात भारत में बढ़ गया।
निष्कर्ष:-
इस प्रकार हमने आपको Class 10th Social Science Subjective Question के बारे में पूरी जानकारी विस्तारपूर्वक से Bihar Board Exam 2025 के लिए प्रदान किया अगर आप सभी को हमारा आर्टिकल पसंद आया हो तो आप हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें अगर आपके मन में किसी भी प्रकार का कोई सुझाव हो तो आप हमे आप नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें |हमें उम्मीद है कि यह जानकारी आपके लिए उपयोगी रही होगी। यदि यह लेख आपको पसंद आया है, तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर अवश्य करें। लेख पढ़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद 🙂